आयुर्वेद से स्वस्थ जीवन (Healthy Life With Ayurveda)

Healthy life with ayurveda
Healthy Life with Ayurveda

दोस्तों, आप सभी का बहुत – बहुत स्वागत है आज मैं आप लोगो को बताऊंगा कि आयुर्वेद ही क्यों सबसे best treatment है और आप जानेंगे क्या है आयुर्वेद, कैसे आप आयुर्वेद से स्वस्थ जीवन व्यतीत करेंगे आज के समय में। आयुर्वेद हम सब के लिए एक वरदान है।

“आज की भाग-दौड़ भरी ज़िंदगी में हम सबका सबसे बड़ा सपना है – स्वस्थ और संतुलित जीवन। लेकिन सच्चाई ये है कि आधुनिक जीवनशैली हमें बीमारियों की तरफ धकेल रही है। जब भी हम थक जाते हैं या किसी बीमारी से परेशान होते हैं, तब हमें याद आता है कि हमारे पूर्वज बिना दवाइयों के भी कितने स्वस्थ और दीर्घायु रहते थे।

मैंने खुद भी कई बार महसूस किया है कि दवा से सिर्फ लक्षण दबते हैं, लेकिन असली उपचार तब होता है जब हम अपनी जीवनशैली और खानपान को सही दिशा देते हैं। इसी सोच ने मुझे ‘आयुर्वेद’ की तरफ मोड़ा।

आयुर्वेद केवल एक चिकित्सा पद्धति नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला है। इसमें शरीर, मन और आत्मा – तीनों का संतुलन ज़रूरी माना गया है। आज मैं आपके साथ विस्तार से साझा करूंगा कि किस तरह आयुर्वेद हमें ‘सच्चा स्वस्थ जीवन’ जीने की राह दिखाता है।”

आयुर्वेद (Ayurveda) भारत की प्राचीन चिकित्सा प्रणाली है, जो केवल रोगों के उपचार तक सीमित नहीं है बल्कि स्वस्थ जीवन (Healthy Life) और दीर्घायु (Longevity) प्रदान करने का मार्ग भी दिखाती है। इसका मुख्य उद्देश्य है – रोग से बचाव करना, शरीर और मन का संतुलन बनाए रखना तथा प्राकृतिक ढंग से जीवन को निरोगी बनाना।

आज के समय में जब लोग Modern Lifestyle और Fast Food Culture के कारण अनेक बीमारियों से घिर चुके हैं, तब वे दोबारा Natural Healing और Ayurvedic Treatment की ओर लौट रहे हैं। यही कारण है कि पूरी दुनिया में “Ayurveda for Healthy Life” और “Ayurvedic Lifestyle” जैसे शब्द लोकप्रिय हो चुके हैं।

आयुर्वेद का महत्व (Importance of Ayurveda)

आयुर्वेद केवल एक चिकित्सा पद्धति नहीं बल्कि जीवन जीने की संपूर्ण कला (Art of Living) है। इसमें प्राकृतिक उपचार (Natural Remedies), संतुलित आहार (Balanced Diet), योग (Yoga), प्राणायाम (Pranayama) और ध्यान (Meditation) जैसे साधनों के माध्यम से मनुष्य को एक संतुलित जीवन जीने की शिक्षा दी जाती है।

आयुर्वेद का महत्व आधुनिक युग में और भी बढ़ गया है क्योंकि:

1.) यह शरीर को रोगों से लड़ने की क्षमता (Immunity Power) प्रदान करता है।

2.) यह हमें दवाइयों के दुष्प्रभाव (Side Effects) से बचाता है।

3.) यह मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) को मजबूत बनाता है।

4.) यह संपूर्ण स्वास्थ्य (Holistic Health Care) पर ध्यान देता है।

आयुर्वेद का इतिहास

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आयुर्वेद के ग्रंथ

आयुर्वेद की जड़ें वेदों में पाई जाती हैं। विशेषकर अथर्ववेद को इसका मुख्य स्रोत माना जाता है। लगभग 5000 वर्ष पहले जब आधुनिक चिकित्सा का अस्तित्व भी नहीं था, उस समय वैद्य और ऋषि लोग आयुर्वेद का प्रयोग कर बीमारियों का उपचार करते थे।

प्रसिद्ध ग्रंथ

आयुर्वेद के तीन प्रमुख ग्रन्थ है :

1.) चरक संहिता (Charaka Samhita) :

इसकी रचना “आचार्य चरक “ने की थी इसमें कायचिकित्सा (आंतरिक) रोगों  का वर्णन किया है।

विशेषताएं :

1.) यह आयुर्वेद का सबसे प्राचीन और विस्तृत ग्रंथ माना जाता है।

2.) इसमें शरीर की संरचना, रोगों के कारण, लक्षण और औषधियों से उपचार का विस्तार से वर्णन है।

3.) विशेष रूप से  रोग – निवारण (Preventive healthcare) और स्वस्थ जीवनशैली पर ज़ोर दिया गया है।

4.) इसमें औषधियों की अनेक श्रेणियां,जड़ी-बूटियों का प्रयोग, आहार-विहार और दिनचर्या का उल्लेख मिलता है।

 इसलिए इसे “आयुर्वेद का चिकित्सा शास्त्र “कहा जाता है।

2.) सुश्रुत संहिता (Sushruta Samhita) :

इसकी रचना “आचार्य सुश्रुत” ने की थी इसमें शल्य चिकित्सा (Surgery) का विस्तार से वर्णन है।

विशेषताएं :

1.) इस ग्रंथ में लगभग 300 से अधिक शल्य उपकरणों और आसनों का वर्णन है।

2.) इसमें प्लास्टिक सर्जरी, अंग प्रत्यारोपण और नाक की पुनर्निर्माण शल्यक्रिया (Rhinoplasty) का उल्लेख मिलता है।

3.) इसमें शरीर रचना (Anatomy), रक्तस्राव रोकने की विधियां और घावों की चिकित्सा का वैज्ञानिक विवरण है।

4.) सुश्रुत संहिता को आज भी आधुनिक शल्य विज्ञान (Surgery) की नींव माना जाता है।

 इसीलिए इसे “आयुर्वेद का शल्य शास्त्र” कहा जाता है।

3.) अष्टांग हृदय (Ashtanga Hridaya) :

इसकी रचना “आचार्य वागभट्ट “ने की थी 

विशेषताएं :

इसमें आयुर्वेद के सभी आठ अंगों (अष्टांग आयुर्वेद) का ज्ञान सरल भाषा में दिया गया है:

1. कायचिकित्सा (Medicine)

2. शल्यचिकित्सा (Surgery)

3. शालक्य (Eye, Ear, Nose, Throat)

4. कौमारभृत्य (बाल चिकित्सा)

5.  विष विज्ञान(Toxicology)

6. भूतविद्या (मानसिक रोग / Psychiatry)

7. रसायन तंत्र (Rejuvenation therapy)

8. वाजीकरण तंत्र (Aphrodisiac / Sexual health)

इसमें दिनचर्या (Daily routine), ऋतुचर्या (Seasonal routine), आहार-विहार, पंचकर्म और औषधियों का भी सरल व विस्तृत वर्णन है।

यह आम जनमानस के लिए लिखा गया है ताकि हर व्यक्ति आयुर्वेदिक जीवनशैली को अपना सके।

इसे “आयुर्वेद का जीवन मार्गदर्शक ग्रंथ” कहा जा सकता है।

यह स्पष्ट करता है कि आयुर्वेद केवल घरेलू नुस्खों तक सीमित नहीं था, बल्कि एक संपूर्ण चिकित्सा विज्ञान (Complete Medical Science) था।

आयुर्वेद के मूल आधार 

आयुर्वेद की नींव कुछ महत्वपूर्ण सिद्धांतों पर रखी गई है, जिन्हें समझना बहुत आवश्यक है।

 पंचमहाभूत सिद्धांत 

आयुर्वेद मानता है कि सम्पूर्ण सृष्टि और मानव शरीर पांच तत्वों से निर्मित है –

 1. पृथ्वी (Earth)  2. जल (Water)  3. अग्नि (Fire)  4. वायु (Air)  5. आकाश (Ether/Space)

जब ये पांचों तत्व संतुलन में रहते हैं, तो शरीर स्वस्थ रहता है। लेकिन इनके असंतुलन से ही रोग

उत्पन्न होते हैं।

त्रिदोष सिद्धांत 

आयुर्वेद का सबसे प्रसिद्ध सिद्धांत है – त्रिदोष (Tridosha Theory)। इसके अनुसार शरीर तीन प्रमुख शक्तियों से संचालित होता है:

1.) वात (Vata) – यह गति और स्नायु तंत्र (Nervous System) को नियंत्रित करता है।

2.) पित्त (Pitta) – यह पाचन, ताप और चयापचय (Metabolism) को नियंत्रित करता है।

3.) कफ (Kapha) – यह स्थिरता, बल और रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) का स्रोत है।

यदि वात, पित्त और कफ संतुलित रहते हैं तो व्यक्ति निरोगी रहता है। असंतुलन होने पर रोग उत्पन्न होते हैं।

सप्त धातु सिद्धांत 

आयुर्वेद के अनुसार शरीर सात धातुओं (Tissues) से बना है:

1. रस (Plasma)  2. रक्त (Blood)  3. मांस (Muscle)  4. मेद (Fat)  5. अस्थि (Bone)  6.  मज्जा (Nerve Tissue & Bone Marrow)  7. शुक्र (Reproductive Tissue)

इन धातुओं का पोषण ही स्वास्थ्य की कुंजी है। जब इनमें से किसी एक में विकार आ जाता है तो स्वास्थ्य बिगड़ने लगता है।

आयुर्वेद और आधुनिक स्वास्थ्य व्यवस्था 

Ayurveda treatment and modern treatment difference between both
आयुर्वेद चिकित्सा और आधुनिक चिकित्सा

आज की स्वास्थ्य व्यवस्था मुख्य रूप से Allopathy पर आधारित है। यह रोगों को जल्दी दबा तो देती है, लेकिन लंबे समय तक दवाइयों के Side Effects झेलने पड़ते हैं।

इसके विपरीत आयुर्वेद शरीर को केवल ठीक ही नहीं करता बल्कि उसकी प्राकृतिक शक्ति (Natural Strength) को भी बढ़ाता है। यही कारण है कि लोग अब “Healthy Lifestyle with Ayurveda” को अपनाने लगे हैं।

दैनिक जीवन में आयुर्वेद का महत्व 

आयुर्वेद मानता है कि अगर हम रोज़मर्रा की दिनचर्या को संतुलित कर लें, तो आधे रोग कभी पास भी नहीं आएंगे।

आज की भाग-दौड़ भरी ज़िंदगी में लोग देर रात तक जागते हैं, fast food खाते हैं और व्यायाम (Exercise ) को महत्व नहीं देते। नतीजा यह होता है कि छोटी उम्र में ही Diabetes, High BP, Stress, Obesity जैसी बीमारियां घर कर लेती हैं।

आयुर्वेद इसके बिल्कुल उलट हमें सिखाता है कि सुबह से रात तक का एक संतुलित रूटीन (Dincharya) ही हमारी असली दवा है।

प्रातःकाल का महत्व (Brahmamuhurt) 

आयुर्वेद के अनुसार सूर्योदय से पहले उठना सबसे अच्छा समय है। इसे ब्रह्ममुहुर्त कहा जाता है।

इस समय वातावरण शुद्ध और शांत होता है। यह समय मन की शांति, ध्यान (Meditation), योग (Yoga) और प्राणायाम (Pranayama) के लिए सर्वोत्तम माना गया है।

1.) जल सेवन (Ushapan) – सुबह उठकर गुनगुना पानी पीना शरीर को डिटॉक्स करता है।

2.) जिह्वा शुद्धि (Tongue Cleaning) – जीभ पर जमी परत (Toxins) को हटाना पाचन शक्ति के लिए आवश्यक है।

3.) तेल से कुल्ला (Oil Pulling) – तिल या नारियल तेल से कुल्ला करने से दांत और मसूड़े मजबूत रहते हैं।

 early morning and Yoga, exercise and running
योग और प्राणायाम

योग और प्राणायाम का महत्व 

आयुर्वेद और योग का रिश्ता अटूट है। सुबह के समय योगासन और प्राणायाम शरीर को ऊर्जावान बनाते हैं।

 • सूर्य नमस्कार शरीर को लचीला और सक्रिय बनाता है।

 • अनुलोम-विलोम प्राणायाम मानसिक शांति देता है।

 • कपालभाति पाचन और मोटापा नियंत्रण में सहायक है।

अगर दिन की शुरुआत ही योग और ध्यान से हो, तो पूरा दिन Positive Energy से भरा रहता है।

आयुर्वेदिक आहार दिनचर्या 

आयुर्वेद कहता है कि भोजन ही हमारी असली दवा है। अगर भोजन संतुलित और सात्विक होगा तो शरीर कभी बीमार नहीं पड़ेगा।

1.) नाश्ता (Breakfast) 

सुबह हल्का लेकिन पौष्टिक नाश्ता करना चाहिए।

जैसे – दलिया, ओट्स, ताजे फल, अंकुरित अनाज।

2.) दोपहर का भोजन (Lunch) 

आयुर्वेद के अनुसार दिन का सबसे भारी भोजन दोपहर में करना चाहिए क्योंकि इस समय पाचन अग्नि (Digestive Fire) सबसे प्रबल होती है।

इसमें हरी सब्जियां, चावल, रोटी और सलाद शामिल होना चाहिए।

3.) रात्रि भोजन (Dinner) 

शाम का भोजन हल्का और जल्दी कर लेना चाहिए।

रात को भारी भोजन करने से पाचन धीमा हो जाता है और Acidity, Gas, Constipation जैसी समस्याएं बढ़ती हैं।

ऋतुचर्या (Seasonal Lifestyle in Ayurveda) 

आयुर्वेद का मानना  है कि मौसम के अनुसार आदतें बदलना भी ज़रूरी है। इसे ऋतुचर्या कहा जाता है।

1.) ग्रीष्म ऋतु (Summer Season) 

 • ठंडे और जलयुक्त फल जैसे तरबूज, खरबूजा।

 • नींबू पानी, छाछ, नारियल पानी।

 • मसालेदार और तैलीय भोजन से परहेज़।

 2.) वर्षा ऋतु (Rainy Season) 

 • हल्का और सुपाच्य भोजन करें।

 • अदरक, हरी मिर्च, नींबू का प्रयोग बढ़ाए।

 • अधिक बाहर का भोजन करने से बचें क्योंकि इस समय संक्रमण का खतरा ज्यादा रहता है।

3.) शीत ऋतु (Winter Season) 

 • गर्म दूध, तिल, मूंगफली, अदरक जैसी चीजें खानी चाहिए।

 • मसाले जैसे दालचीनी और काली मिर्च प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं।

 • शरीर को गर्म रखने वाले आहार और व्यायाम पर ध्यान देना चाहिए।

रात्रि दिनचर्या (Night Routine)

1.) सूर्यास्त के बाद बहुत देर तक इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स का प्रयोग न करें।

2.) सोने से पहले गर्म दूध या हर्बल टी पीना नींद को गहरी और शांत बनाता है।

3.) रात 10 बजे से पहले सोने की आदत सबसे उत्तम मानी है।

आहार ही औषधि है

आयुर्वेद कहता है – “ व्यूह्यते  आहारसंस्कारैः शरीरधारणम सुखं“, यानी अगर आहार सही हो तो शरीर स्वयं ही निरोगी रहेगा।

आज की दुनिया में लोग दवाइयों पर निर्भर हो गए हैं, जबकि आयुर्वेद का स्पष्ट मत है कि भोजन ही सबसे बड़ी औषधि (Food is Medicine) है।

सही भोजन शरीर को ऊर्जा ही नहीं देता बल्कि रोगों से लड़ने की क्षमता (Immunity) भी प्रदान करता है। यही कारण है कि “Ayurveda Diet” और “Healthy Eating with Ayurveda” जैसे शब्द आज इंटरनेट पर बहुत खोजे जाते हैं।

सात्विक आहार का महत्व

आयुर्वेद आहार को तीन श्रेणियों में बांटता है – सात्विक, राजसिक और तामसिक

स्वस्थ जीवन के लिए सात्विक आहार सबसे उत्तम माना गया है।

सात्विक आहार की विशेषताएं

• ताज़ा और प्राकृतिक भोजन (Fruits, Vegetables, Whole Grains)

• हल्का और सुपाच्य भोजन

• मसालों का संतुलित उपयोग

• कम तेल और कम नमक

सात्विक आहार के लाभ

• पाचन शक्ति मजबूत होती है।

• मन शांत और एकाग्र रहता है।

• नींद अच्छी आती है।

• रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) बढ़ती है।

HealthY food for good health
सात्विक भोजन

आयुर्वेदिक मसाले और उनकी शक्ति

भारतीय रसोईघर आयुर्वेद की सबसे बड़ी प्रयोगशाला है। हमारे यहां रोज़मर्रा में इस्तेमाल होने वाले मसाले ही Natural Medicine का काम करते हैं।

1.)  हल्दी (Turmeric)

• सूजन और संक्रमण को कम करती है।

• त्वचा रोगों और जोड़ों के दर्द में लाभकारी।

2.) दालचीनी (Cinnamon)

• ब्लड शुगर (Diabetes) नियंत्रित करती है।

• पाचन तंत्र को मजबूत बनाती है।

3.) अदरक (Ginger)

• सर्दी-जुकाम और गले की खराश में कारगर।

• भूख और पाचन में सहायक।

4.) जीरा (Cumin)

• गैस और अपच दूर करता है।

• लिवर को स्वस्थ रखता है।

इसी प्रकार के बहुत सारे औषधि हमारे रसोई घर में मौजूद है जिनका उपयोग करके हम अपनी  सेहत को अच्छा और तंदुरुस्त बना सकते हैं।

आयुर्वेद और पोषण

आयुर्वेद मानता है कि हर व्यक्ति का शरीर अलग होता है। किसी के लिए जो भोजन फायदेमंद है, वह दूसरे के लिए हानिकारक भी हो सकता है।

इसीलिए आहार हमेशा दोष (Vata, Pitta, Kapha) के अनुसार होना चाहिए।

1.) वात दोष वालों के लिए आहार

• गर्म और तेलयुक्त भोजन

• दूध, घी और सूखे मेवे

2.) पित्त दोष वालों के लिए आहार

• ठंडे और मीठे फल

• खीरा, तरबूज, गन्ने का रस

3.) कफ दोष वालों के लिए आहार

• मसालेदार और हल्का भोजन

• अदरक, लहसुन और हरी मिर्च

योग और आयुर्वेद का संबंध

Relation between yoga and Ayurveda for healthy life
योग और आयुर्वेद

आयुर्वेद और योग दोनों एक ही दर्शन की शाखाएँ हैं।

आयुर्वेद शरीर को संतुलित करता है, और योग मन को स्थिर करता है। दोनों मिलकर  हमें Holistic Health (संपूर्ण स्वास्थ्य) प्रदान करते हैं।

योगासन और उनका लाभ

1.) सूर्य नमस्कार – सम्पूर्ण शरीर के लिए उत्तम व्यायाम।

2.) पश्चिमोत्तानासन  – पाचन तंत्र को मजबूत करता है।

3.) वृक्षासन – एकाग्रता और संतुलन बढ़ाता है।

प्राणायाम और ध्यान

1.) अनुलोम-विलोम – मन और श्वसन  तंत्र को शुद्ध करता है।

2.) भ्रामरी – मानसिक तनाव को दूर करता है।

3.) ध्यान (Meditation) – मन को स्थिर और सकारात्मक बनाता है।

भोजन और योग का सामंजस्य 

आयुर्वेद कहता है कि योग तभी फलदायी होगा जब आहार सात्विक और शुद्ध होगा।

यदि कोई व्यक्ति योग तो करता है लेकिन भोजन में जंक फूड और शराब लेता है, तो उसे लाभ नहीं मिलेगा।

इसीलिए कहा गया है –

“सात्विक भोजन + योगाभ्यास = निरोगी जीवन”

आयुर्वेद और रोग-निवारण (Ayurveda for Disease Prevention)

आयुर्वेद की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह केवल रोग होने पर इलाज (Treatment) नहीं करता, बल्कि रोग होने से पहले ही उसकी रोकथाम (Prevention) पर ज़ोर देता है। यही कारण है कि आयुर्वेद को “Holistic Science of Life” कहा जाता है।

Ayurveda and Yoga learn how to keep healthy and fit
आयुर्वेद और योग

रोगों की जड़ पर प्रहार

आधुनिक चिकित्सा प्रायः लक्षण (Symptoms) पर ध्यान देती है, जबकि आयुर्वेद रोग की जड़ (Root Cause) को पहचानकर उसे दूर करने का प्रयास करता है।

उदाहरण के लिए –

 • सिरदर्द की गोली दर्द को दबा सकती है, लेकिन आयुर्वेद यह देखेगा कि सिरदर्द पित्त दोष या वात असंतुलन की वजह से तो नहीं हो रहा।

 • पेट दर्द की दवा तात्कालिक आराम दे सकती  है, लेकिन आयुर्वेद अग्नि (Digestive Fire) को संतुलित करके उसे स्थायी रूप से ठीक करने का उपाय बताता है।

रोग-निवारण के 3 मुख्य आधार

1.) दोष संतुलन (Dosha Balance) – वात, पित्त और कफ का असंतुलन ही अधिकांश रोगों की जड़ है। आहार, जीवनशैली और औषधियों से इन्हें संतुलित करके रोग दूर किए जाते हैं।

2.) अग्नि की रक्षा (Maintaining Agni) – पाचन तंत्र (Digestive Fire) की मजबूती से शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) बढ़ती है। आयुर्वेदिक उपचार हमेशा अग्नि को संतुलित करने पर बल देता है।

3.) ओजस का विकास (Enhancing Vital Energy) – ओजस शरीर की वह शक्ति है जो हमें रोगों से बचाती है। पौष्टिक आहार, प्राणायाम, ध्यान और आयुर्वेदिक टॉनिक से ओजस को बढ़ाया जाता है।

सामान्य रोग और आयुर्वेदिक उपाय

 • मोटापा (Obesity) – त्रिफला, लौकी का रस, नियमित योगासन।

 •  डायबिटीज (Madhumeh) – करेला-जूस, मेथीदाना, शुद्ध आहार।

 • उच्च रक्तचाप (High BP) – आंवला, अर्जुन की छाल, ध्यान और प्राणायाम।

 • तनाव और अनिद्रा (Stress & Insomnia) – अश्वगंधा, ब्राह्मी, शिरोधारा।

 • पाचन रोग (Indigestion, Acidity) – जीरा, सौंफ, अदरक और छाछ।

 • त्वचा रोग (Skin Disorders) – नीम, हल्दी, एलोवेरा, पंचकर्म थेरेपी।

“इन सब उपायों का प्रयोग वैद्य (Ayurvedic Doctor) की देखरेख में ही करना चाहिए।”

सामान्य प्रश्न (FAQs) 

1.) क्या आयुर्वेद से सभी रोग ठीक हो सकते हैं?

सभी रोग केवल आयुर्वेद से ठीक हों, यह आवश्यक नहीं। लेकिन अधिकांश Lifestyle Diseases और Chronic Illnesses में यह अत्यंत प्रभावी है। 

2.) क्या आयुर्वेद आधुनिक चिकित्सा का विकल्प है?

नहीं, यह पूरक चिकित्सा (Complementary Medicine) है। आपातकालीन स्थिति में आधुनिक चिकित्सा ज़रूरी है, पर दीर्घकालिक स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेद श्रेष्ठ है।

3.) रोग-निवारण के लिए रोज़ क्या करें?

 • सुबह सूर्योदय से पहले उठें।

 • हल्का और संतुलित भोजन करें।

 • योग और प्राणायाम करें।

 • मौसमी फलों और सब्ज़ियों का सेवन करें।

 • सकारात्मक सोच और ध्यान रखें।

निष्कर्ष 

आयुर्वेद एक जीवन-दर्शन है, केवल चिकित्सा पद्धति नहीं। यह हमें सिखाता है कि यदि हम प्रकृति के नियमों का पालन करें तो अधिकांश रोग पास भी नहीं फटकेंगे।

आज जब विश्व “Lifestyle Disorders” से जूझ रहा है, तब आयुर्वेद ही एक ऐसा समाधान है जो “Prevention + Healing” दोनों प्रदान करता है।

 इसलिए आयुर्वेद अपनाइए, स्वाभाविक जीवन जिए और खुद को बीमारियों से मुक्त, स्वस्थ और ऊर्जावान बनाए रखिए।

                                                    जय हिंद – जय भारत 

                                                  “स्वस्थ भारत – मस्त भारत”

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